जो थोड़े जिंदा हैं उन्हें जी लेने दो

बड़ी मुश्किल से मिलती है यहाँ खुशियाँ,
जो जैसे खुश होते हैं हो लेने दो।
जीते जी ही मरने लगे हैं लोग यहाँ,
जो थोड़े जिंदा हैं उन्हें जी लेने दो।
क्या करोगे इस भेड़िये समाज का ,
इनके उसूलों आदर्श का।
वक़्त पर न जाने गुम हो जाते कहाँ,
अरे ,गिरतो को थामने का हौसला किसको यहाँ।नमक ही सही पानी में उन्हें पी लेने दो,
जो थोड़े जिंदा है उन्हें जी लेने दो।
रोज नए बटखरे से तोलते हैं लोग,
कब किसको सौ फीसदी सही बोलते हैं लोग।
कोई सूत्र नहीं, कोई मंत्र नहीं सुकून पाने का यहाँ,
जो जिस रास्ते पाता है पा लेने दो।
जो थोड़े जिंदा हैं उन्हें जी लेने दो।
बेफ़िक्री से बीते बस वही पल जिन्दगानी है,
वरना तो ये पूरा जीवन ही बेईमानी है।
क्या पता ‘मानस’ कब चमके किस्मत का सितारा,
लौट आए चैन-ओ-अमन,मोहब्बत, भाईचारा।
हमें भी इस हसीन ख्वाब में थोड़ा खो लेने दो,
जो थोड़े जिंदा हैं उन्हें जी लेने दो ।।
©प्रज्ञा भारती
स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री
Post Graduate in History (Patna University)
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