मकर संक्रांति भारतीय राज्य के साथ देश विदेश में ? makarsakranti bhartiya rajyo ke sath desh videsh me / Makar Sankranti Wishes 2022

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मकरसंक्रांति एक महान पर्व जो अंधकार से प्रकाश की और जाने का द्योतक है। यह देवताओं के लिए भी शुभ काल माना जाता है। यहीं से दिन बड़ा और रातें छोटी होने लगती हैं। जिसके परिणाम स्वरुप सारे प्राणी जगत की चेतना और शारीरिक क्षमता का भी विस्तार होता है।
भगवान सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति है । इसके उपरांत सूर्य अपनी कक्षा में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं।

  • संक्रांति क्या है ?
    सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो वह काल संक्रांति काल कहलाता है। सूर्य अपने बारह स्वरुप में , बारह महीने , बारह राशियों में संक्रमण करते हैं। इनके संक्रमण से ही पूरे पूरे वर्ष में बारह संक्रांति होती है। परन्तु मकर संक्रांति का विशिष्ठ स्थान है। इसे पुण्य काल भी कहते हैं।

 

  • मकर संक्रांति महत्वपूर्ण क्यों ?
    सूर्य भगवान इस दिन खुद अपने पुत्र शनि देव के घर एक महीने के लिए जाते हैं। शनिदेवता ही मकर राशि के स्वामी हैं। यह दिन पिता पुत्र के संबंधों में निकटता का भी द्योतक माना जाता है।
    मकर संक्रान्ति को ही मां गंगा भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं ।
    लोककथा ;
    मकर-संक्रान्ति के दिन ही कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था, बाल कृष्ण ने उस राक्षसी को मौत के घाट उतार दिया था । इसी संदर्भ में लोहिड़ी का पर्व भी मनाया जाता है। साथ ही नयी फसल का चावल, दाल, तिल आदि से पूजा करके कृषि देवता के प्रति आभार प्रकट किया जाता है।
    आध्यात्मिक दृष्टि के साथ साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी फलदायक है इसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
    मत्स्य पुराण और स्कन्द पुराण में हमें इसका विशेष उल्लेख देखने को मिलता है। मत्स्य पुराण में व्रत विधि की चर्चा है और स्कन्द पुराण में संक्रांति पर किये जाने वाले विभिन्न दानों के बारे में बताया गया है।

मकर संक्रांति की तिथि ;
मकरसंक्रांति का पर्व हर वर्ष चौदह जनवरी को मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार यह तिथि पौष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ती है।
मकर संक्रांति एकमात्र भारतीय त्योहार है जो सौर चक्रों के अनुसार मनाया जाता है, जबकि अधिकांश त्योहार हिंदू कैलेंडर के चंद्र चक्र का पालन करते हैं। इसलिए, यह लगभग हमेशा हर साल (14 जनवरी) एक ही ग्रेगोरियन डेट पर पड़ता है और शायद ही कभी एक या एक दिन की तारीख में बदलाव होता है। यह मौसम के परिवर्तन का सूचक भी है।
ऐसी भी मान्यता है कि इस तारीख से दिन रोज तिल भर बढ़ने लगते हैं, इसलिए इसे तिल संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है।

 

मकर संक्रांति में तिल का महत्त्व :
इस पर्व पर तिल का इतना महत्व है कि स्नान करते समय जल में तिल डालकर स्नान करने का विधान है। तिल हमेशा से ही यज्ञ-हवन सामग्री में प्रमुख वस्तु माना गया है। मकर संक्रांति में तिल खाने से तिल दान तक की अनुशंसा शास्त्रों ने की है। का इतना महत्व है कि स्नान करते समय जल में तिल डालकर स्नान करने का विधान है। तिल हमेशा से ही यज्ञ-हवन सामग्री में प्रमुख वस्तु माना गया है। मकर संक्रांति में तिल खाने से तिल दान तक की अनुशंसा शास्त्रों ने की है।

मकर संक्रांति मैं स्नान का महत्तव :
गंगास्नान की बहुत महत्ता है मकर संक्रांति के दिन । इस पर्व पर गंगासागर और तीर्थराज प्रयाग में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।
“ माघमाघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई ।।“
ऐसा कहा जाता है कि मकर-संक्रान्ति के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में स्नान के लिए आते हैं। इसी कारण मकर-संक्रान्ति के दिन गंगास्नान या अन्य नदियों में स्नान को अत्यन्त पुण्यदायी माना गया है। यदि गंगालाभ संभव ना हो तो पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए ।

मकर संक्रांति भारत के साथ साथ नेपाल का भी एक पावन त्यौहार है। विश्व के कई और देशों में भी यह अलग अलग नामों से मनाया जाता है।
भारत के हर राज्य में यह पर्व अलग अलग नाम से मनाया जाता है। अलग -अलग रीति रिवाज और विभिन्न रंग रूप के साथ।

 

  • उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति :
    उत्तर प्रदेश और बिहार में यह पर्व मकर संक्रांति, तिलासंक्रांति और खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन तिल, चावल, उरद ,चूरा , गुड़, गौ, स्वर्ण, कंबल, ऊनी वस्त्र कम्बल आदि का यथाशक्ति दान करने का महत्वा माना जाता है ||

 

गुजरात में मकर संक्रांति : गुजरात में मकर संक्रांति को उत्तरायण कहते हैं। यहाँ यह पर्व दो दिन तक बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। १४ जनवरी को यानि पहले दिन को उत्तरायण और अगले दिन को बासी उत्तरायण के रूप में मानते हैं। उंधियू और चिक्की इस दिन का विशेष व्यंजन होता है।

  • तमिलनाडु में मकर संक्रांति :
    पोंगल के रूप में मनाया जाने वाला यह त्यौहार तमिलनाडु में चार दिनों तक चलता है। पहला दिन भोगी पोंगल। इस दिन कूड़ा करकट उठाकर जलाया जाता है। दुसरे दिन सूर्य पोंगल जिसमें लक्ष्मी जी की पूजा होती है। तीसरे दिन मट्टू पोंगल या केनू पोंगल जिसमें पशु धन की पूजा होती है। और चौथे दिन कन्या पोंगल के साथ समाप्ति करते हैं। खुले आँगन में मिटटी के बर्तन में खीर बनायीं जाती है जिसे पोंगल कहते हैं। सूर्यदेव को यह प्रसाद चढ़ाकर आपसे में बांटते हैं। चावल के पकवान और रंगोली भी बनाते हैं। इस दिन भगवान कृष्णा की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन यहाँ बेटी और दामाद का विशेष स्वागत होता है।
  • केरल में मकर संक्रांति :
    केरल में मकर विलक्कू कहा जाता है। सबरीमाला मंदिर के पास मकर ज्योति के दर्शन करने लोग जाते हैं।
  • आंध्रा–प्रदेश में मकर संक्रांति :
    आंध्रप्रदेश में भी पोंगल के नाम से जाना जाता है। संक्रांति का पर्व यहाँ तीन दिनों तक मनाया जाता है। लोग पुरानी चीजें फेंककर नई चीज लेते हैं। किसान अपने खेत और गाय बैल की पूजा करते हैं।
  • कर्नाटक में मकर संक्रांति :
    मकर संक्रमण कहा जाता है कर्नाटक में । ‘एलु बिरोधु’ नामक एक अनुष्ठान के साथ संक्रांति मनाई जाती है, जहां महिलाएं कम से कम 10 परिवारों के साथ एलु बेला (ताजे कटे हुए गन्ने, तिल, गुड़ और नारियल का उपयोग करके बनाई गई क्षेत्रीय व्यंजनों) का आदान-प्रदान करती हैं।

 

पंजाब में मकर संक्रांति :
पंजाब में मकर संक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है। माघी के दिन तड़के नदी में स्नान का विशेष महत्व है। हिंदू तिल के तेल से दीपक जलाते हैं क्योंकि यह समृद्धि देने वाला और सभी पापों को दूर करने वाला माना जाता है। माघी पर श्री मुक्तसर साहिब में एक प्रमुख मेला आयोजित किया जाता है जो सिख इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है। भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है, जिसके बाद सारे बैठकर खिचड़ी, गुड़ और खीर खाते हैं। लोहड़ी संक्रांति या माघी से एक रात पहले मनाई जाती है। माघी के अगले दिन से किसान अपने वित्तीय वर्ष की शुरुआत करते हैं।

जम्मू में यह पर्व उत्तरैन’ और ‘माघी संगरांद’ के नाम से विख्यात है। कुछ लोग इसे उत्रैण, अत्रैण’ अथवा ‘अत्रणी’ के नाम से भी जानते है। इससे एक दिन पूर्व लोहड़ी का पर्व भी मनाया जाता है, जो कि पौष मास के अन्त का प्रतीक है। मकर संक्रान्ति के दिन माघ मास का आरंभ माना जाता है, इसलिए इसको ‘माघी संगरांद’ भी कहा जाता है।
जम्मू में इस दिन ‘बावा अम्बो’ जी का भी जन्मदिवस मनाया जाता है।
उधमपुर की देविका नदी के तट पर, हीरानगर के धगवाल में और जम्मू के अन्य पवित्र स्थलों पर जैसे कि पुरमण्डल और उत्तरबैह्नी पर इस दिन मेले लगते है।
भद्रवाह के वासुकी मन्दिर की प्रतिमा को आज के दिन घृत से ढका जाता है।

 

मकर संक्रांति मैं पतंगबाजी का महत्तव  :

पतंगबाजी को पारंपरिक रूप से इस त्योहार के एक भाग के रूप में मनाया जाता है, जो राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी खूब लोकप्रिय है। इसे राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में संक्रांत कहते हैं और आमतौर पर महिलाएं इसमें एक अनुष्ठान का पालन करती हैं जिसमें वे 13 विवाहित महिलाओं को किसी भी प्रकार की वस्तु (घर, श्रृंगार या भोजन से संबंधित) देती हैं।

 

पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-“सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।“

 

# असम
माघ बिहू जिसे भोगली बिहू भी कहा जाता है, असम, भारत में मनाया जाने वाला एक फसल उत्सव है, जो माघ (जनवरी-फरवरी) के महीने में कटाई के मौसम के अंत का प्रतीक है। यह संक्रांति का असम उत्सव है, जिसमें एक सप्ताह तक दावत होती है। युवा लोग बांस, पत्तियों और छप्पर से मेजी नाम की झोपड़ियों का निर्माण करते हैं, जिसमें वे दावत खाते हैं, और फिर अगली सुबह उन झोपड़ियों को जलाया जाता है। माघ बिहू के दौरान असम के लोग विभिन्न नामों से चावल के केक बनाते हैं जैसे कि शुंग पिठा, तिल पिठा आदि और नारियल की कुछ अन्य मिठाइयां भी बनती हैं, जिन्हें लारू कहा जाता है।

 

# उत्तराखंड
कुमाऊं और गढ़वाल में इस उत्सव को बहुत खूबसूरत तरीके से मनाया जाता है। कुमाऊं में जहां इसे घुघुती भी कहते हैं, वहीं गढ़वाल में खिचड़ी संक्रांत कहा जाता है। भारतीय धार्मिक ग्रंथों के अनुसार उत्तरायण के दिन सूर्य

मकर राशि में प्रवेश करता है, यानी इस दिन से सूर्य ‘उत्तरायण’ हो जाता है। मौसम में बदलाव होता है और पहाड़ी चिड़िया घुघुती पहाड़ों पर वापसी करती है।

कुमाऊं में घुघुती बनाई जाती है, जो एक मिठाई होती है। इसे अलग-अलग आकार में बनाया जाता है। घुघुती चिड़िया के स्वागत पर इसे बनाने की परंपरा है। इसे आटे और गुड़ से बनाया जाता है और गढ़वाली घरों में खिचड़ी बनाई जाती है और उसे दान भी दिया जाता है।

# डोगरा घरानों में इस दिन माँह की दाल की खिचड़ी का मन्सना (दान) किया जाता है। इसके उपरांत माँह की दाल की खिचड़ी को खाया जाता है। इसलिए इसको ‘खिचड़ी वाला पर्व’ भी कहा जाता है।

 

भारत  के बाहर मकर संक्रांति के विभिन्न नाम :
बांग्लादेश : Shakrain/ पौष संक्रान्ति
नेपाल : माघे संक्रान्ति या ‘माघी संक्रान्ति’ ‘खिचड़ी संक्रान्ति’
थाईलैण्ड : สงกรานต์ सोंगकरन
लाओस : पि मा लाओ
म्यांमार : थिंयान
कम्बोडिया : मोहा संगक्रान
श्री लंका : पोंगल, उझवर तिरुनल

नेपाल में मकर-संक्रान्ति कैसे मनाया जाता है ?

नेपाल के सभी प्रांतों (प्रान्तों) में अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रांति (संक्रान्ति) के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है।

नेपाल में मकर संक्रांति (संक्रान्ति) को माघे-संक्रांति (माघे-संक्रान्ति), सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में ‘माघी’ कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिये जाते हैं। तीर्थस्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।


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