वक़्त, इंसानियत और पैसा Time, Humanity & Money !

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वक़्त पे काम आयेगा इस वहम में मत रहिये,
करे खर्च या कि दुगुना इस उलझन में मत रहिये।
पास आए जब ही हसरतें पूरी कर लीजिए,
ये ‘पैसा’है ,इसका भी क्या यकीं,
जरूरत पर दगा दे दे।


कभी मगरुर करता है कभी मजबूर करता है,
कभी इंसान को इंसानियत से दूर करता है।
कहे अभिशाप या कि वरदान क्या कहें इसको,
ताउम्र इसकी फितरत ही समझ नहीं आया।


सच है कि कुछ ख्वाब कुछ सपने अधूरे रह जाते इसके बिना,
लेकिन सबकुछ दुनियां में खरीदा भी नहीं जाता।
टूटने मत दीजिये अपने और अपने रिश्तों को कारण इसके,
तवज्जों उतना ही दीजिये, जितने का हकदार है पैसा।

©प्रज्ञा भारती
स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री
Post Graduate in History (Patna University)

 

 

 

 

 


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