विनायक बने विनायकी, स्त्री रूप में गणेश, Feminine form of Ganesha

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लम्बोदर भगवान गणेश जी का भी नारी रूप था जिसे पौराणिक ग्रंथों में विनायकी और गणेश्वरी नाम से संबोधित किया गया है। सदियों से हिन्दू संप्रदाय के अलावा और भी पंथ में गणेश जी के स्त्री रूप की अराधना की परंपरा रही है ।
वनदुर्गा उपनिषद् में जहां गणेश जी के नारी रूप का वर्णन करते हुए इन्हें गणेश्वरी की संज्ञा दी है, वहीं धर्मोत्तर पुराण में इन्हें विनायकी नाम से संबोधित किया गया है । मत्स्य पुराण में भी गणेश जी के स्त्री रूप का वर्णन मिलता है ।
आगे की चर्चा से पहले कहानी जानते हैं कि गणेश जी को इस रूप में आने कि आवश्यकता क्यूं पड़ी ?

अंधक नाम का एक असुर था जो जबरन अर्धांगिनी बनाने की मंशा से मां पार्वती के पास आया, माता ने शिव जी को सहायता के लिए पुकारा और भोलेनाथ ने अपना त्रिशूल असुर अंधक के आर पार कर दिया, मगर यह क्या रक्त की हर बूंद अंधका नाम की राक्षसी के रूप में परिवर्तित होने लगी ।

देवी को समझ में आ गया कि अब नारी यानी स्त्री तत्व ही ‘ अंधका ‘ का विनाश कर सकती है । हर एक दैवीय शक्ति के अंदर दो तत्व हमेशा मौजूद होते हैं, एक पुरुष तत्व दूसरा नारी तत्व । पुरुष तत्व जहां मानसिक रूप से सक्षम बनाता है वहीं नारी तत्व शक्ति प्रदान करता है । देवी ने तदोपरांत सभी देवियों का आवाह्न किया जो शक्ति के ही रूप हैं । माता के बुलाने पर सभी दैवीय शक्तियां स्त्री रूप में प्रकट हो गईं और असुर के खून को पीने गिरने से पहले ही पीने लगीं , इसके बावजूद ‘ अंधक ‘ और ‘ अंधका ‘ का विनाश असंभव प्रतीत हो रहा था ।

इसी समय लम्बोदर गणेश जी अपने स्त्री रूप में ‘ विनायकी ‘ के रूप में प्रकट हुए। शास्त्रों में इनके रूप का वर्णन माता पार्वती जैसा है, सर गणेश जी की तरह ही गज का है । इन्होंने
‘अंधकासुर’ का सारा रक्त पी लिया और उसका अंत संभव हुआ ।

विनायकी पूजा की परंपरा सदियों से रही है इसके प्रमाण हमें अलग – अलग स्रोतों से मिलते हैं । जैन और बौद्ध धर्म में भी इनको एक अलग देवी के रूप में पूजा जाता है । तंत्र साधना में भी विनायकी देवी की महत्ता थी इसका प्रमाण है कि कई जगह इनको चौसठ योगिनियों में एक के रूप में दर्शाया गया है । इसका एक साक्ष्य मध्य प्रदेश के भेड़ा घाट में मिलता है जहां प्रसिद्ध चौसठ योगिनियों में ४१ वें नंबर की मूर्ति विनायकी की है ।यहाँ इस देवी को श्री-ऐंगिनी कहा जाता है । यहाँ इस देवी के झुके हुए बाएँ पैर को एक हाथीमुखी पुरुष, संभवत: श्री गणेश ने सहारा दिया हुआ है ।

विनायकी सबसे पुरानी टेराकोटा की मूर्ति जो पहली शताब्दी ईसा पूर्व की थी, राजस्थान के रायगढ़ में पाई गई थी ।

बिहार से भी दसवीं सदी की विनायकी एक मूर्ति मिली थी

तेरहवीं सदी की विनायकी की प्रतिमा हमें भूलेश्वर मंदिर में मिलती है जो पुणे से ४५ कि.मी. दूर एक पहाड़ी पर स्थित है ।

केरल के चेरियानद के मंदिर में भी विनायकी की लकड़ी की मूर्त्ति है ।

वेदों में गणपति के स्त्री रूप का उल्लेख विद्या गणपति के रूप में मिलता है ।

तिब्बत में विनायकी की गजाननी के रूप में की जाती है ।

राजस्थान के सिगार गांव के एक पुराने शिव मंदिर में गणेश जी के स्त्री रूप को विघनेश्वरी के रूप में पूजा जाता है ।मदुरई में विनायकी व्याघ्रपदा गणपति के रूप में पूजी जाती हैं । जिनका शरीर स्त्री का है और पैर बाघ का ।

गणेश जी के स्त्री रूप का बखान अलग अलग नामों से किया गया है । ईशानी , विघ्नेश्वरी, गजरूपा, स्त्री – गणेश, पीताम्बरी, गणेशी, ऋद्धिसी आदि नामों से विभूषित किया गया है ।


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