सन्नाटे का छंद / है, अभी कुछ और जो कहा नहीं गया

है, अभी कुछ और जो कहा नहीं गया। उठी एक किरण, धायी, क्षितिज को नाप गयी, सुख की स्मिति कसक-भरी, निर्धन की नैन-कोरों में काँप गयी, बच्चे ने किलक भरी, माँ की वह नस-नस में व्याप गयी। अधूरी हो, पर सहज थी अनुभूति : मेरी लाज मुझे साज बन ढाँप Read more…

शिकायत

ये शिकायत भी अजी हाँ खूब होती है, क्या अदा है कि हर दिल अजीज होती है। वो किस्सा किस्सा ही क्या,। जिसमेंं, सिर्फ अपनी ही बात हो। मजा तो तब आता जब किसी की शिकायत का साथ हो। उमंग भर जाती दिल में ताजगी आ जाती है, बात गैरों Read more…

परंपरा: रामधारी सिंह दिनकर

परंपरा –रामधारी सिंह दिनकर परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो। उसमें बहुत कुछ है, जो जीवित है, जीवनदायक है, जैसे भी हो, ध्वसं से बचा रखने लायक़ है। पानी का छिछला होकर समतल में दौड़ना, यह क्रांति का नाम है। लेकिन घाट बाँधकर पानी को गहरा बनाना यह परंपरा Read more…

मिट्टी की महिमा / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

निर्मम कुम्हार की थापी से कितने रूपों में कुटी-पिटी, हर बार बिखेरी किन्तु मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी। आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए, यों तो बच्चों की गुड़िया-सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या. Read more…

हमारे किसान / कृषक – कविता – रामधारी सिंह दिनकर । Hamare kisaan Poem by Ramdhaari Singh Dinkar

हमारे कृषक – राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘ दिनकर ‘ जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों Read more…

गांव और शहर – कविता, Poem on Village and Town

दोस्तों, आज की भाग दौड़ में हम गाँवों से ज्यादा शहरों को महत्व देते हैं, लेकिन गाँवों में रहने का आनंद आज शहरों में नहीं मिलता। हमारे मन को खुश करने वाले खेत खलिहान हैं, गाँव के लोगों के चेहरे पर हमेशा उत्साह होता है, लेकिन शहरों में लोग दौड़ Read more…

अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है

अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है – राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है, क्यों न इसे सबका मन चाहे, थोड़े में निर्वाह यहां है, ऐसी सुविधा और कहां है ? यहां शहर की बात नहीं है, अपनी-अपनी घात नहीं है, आडंबर का नाम नहीं है, अनाचार का Read more…

देखना ओ गंगा मइया; Dekhna O Ganga Maiya

चंद पैसेदो-एक दुअन्नी-इकन्नीकानपुर-बंबई की अपनी कमाई में सेडाल गए हैं श्रद्धालु गंगा मइया के नामपुल पर से गुजर चुकी है ट्रेननीचे प्रवहमान उथली-छिछली धार मेंफुर्ती से खोज रहे पैसेमलाहों के नंग-धड़ंग छोकरेदो-दो पैरहाथ दो-दोप्रवाह में खिसकती रेत की ले रहे टोहबहुधा-अवतरित चतुर्भुज नारायण ओहखोज रहे पानी में जाने कौस्तुभ मणि।बीड़ी Read more…

दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें / दाग़ देहलवी ( Dil Gaya Tumne Kiya Hum Kya Karen – Daag Dehalvi )

दिल गया तुम ने लिया हम क्या करेंजानेवाली चीज़ का ग़म क्या करें पूरे होंगे अपने अरमां किस तरहशौक़ बेहद वक्त है कम क्या करें बक्श दें प्यार की गुस्ताख़ियांदिल ही क़ाबू में नहीं हम क्या करें तुंद ख़ू है कब सुने वो दिल की बातओर भी बरहम को बरहम Read more…