गंगा स्तुति – कवि विद्यापति Ganga Stuti – Kavi Vidyapati

मैथिल कोकिल, सुप्रसिद्ध रससिद्ध कवि विद्यापति की गंगा-स्तुति । बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे|छोड़इत निकट नयन बह नीरे|| कर जोरि विनमओं विमल तरंगे|पुन दरसन होए पुन मति गंगे|| एक अपराध छेमब मोर जानी|परसल पाय पारू तुअ पानी|| कि करब जप-तप जोग ध्येआने|जनम कृतारथ एकहि सनाने|| भनई विद्यापति समदओं तोही|अन्त Read more…

गंगा स्तुति

गंगा स्तुति II जय जय भगीरथनन्दिनि, मुनि – चय चकोर – चन्दिनि, नर – नाग – बिबुध – बन्दिनि जय जह्नु बालिका ।बिस्नु – पद – सरोजजासि, ईस – सीसपर बिभासि, त्रिपथगासि, पुन्यरासि, पाप – छालिका ॥१॥ बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप – हारि, भँवर बर बिभंगतर तरंग – Read more…